Shri Hit Premanand Ji Maharaj: हमारे जीवन में माया (भ्रम या अज्ञानता) बार-बार हमें अपनी गिरफ्त में ले लेती है। चाहे हम कितना भी प्रयास करें, यह हमें संसार के बंधनों में उलझाकर हमारे आध्यात्मिक विकास को बाधित करती है। श्री हित प्रेमानंद जी महाराज ने इस विषय पर 19 नवंबर 2024 के सत्संग में गहन मार्गदर्शन दिया। आइए, उनके विचारों को समझें और जानें कि माया के चक्रव्यूह से कैसे बाहर निकला जा सकता है।
माया का स्वरूप क्या है?
महाराज जी ने समझाया कि माया कोई बाहरी वस्तु नहीं है; यह हमारी भीतर की इच्छाएं, लालच, और अहंकार का परिणाम है। माया हमें इन तीन रूपों में जकड़ती है:
- आशक्ति: भौतिक वस्तुओं, धन, और रिश्तों में अति लगाव।
- अज्ञानता: परमात्मा के सत्य स्वरूप से दूर रहना।
- अहंकार: स्वयं को हर चीज का कर्ता मानना।
माया का मुख्य उद्देश्य आत्मा को परमात्मा से दूर करना है ताकि मनुष्य अपने वास्तविक स्वरूप को न पहचान सके।
माया से बार-बार फंसने के कारण
- इंद्रियों का वश में न होना: हमारी इंद्रियां सुख की ओर दौड़ती हैं, जिससे हम संसार में उलझ जाते हैं।
- संग का प्रभाव: गलत संगति हमें भटकाव की ओर ले जाती है।
- मन का चंचल स्वभाव: मन हर समय नई इच्छाएं पैदा करता है।
- आध्यात्मिक अभ्यास का अभाव: भगवान का नाम जप, ध्यान, और सत्संग न करना।
माया से बचने के उपाय
महाराज जी ने माया से बचने के लिए कुछ सरल लेकिन प्रभावी उपाय सुझाए:
1. सत्संग का सहारा लें
सत्संग में जाना और संतों के वचनों को सुनना माया के प्रभाव को कमजोर करता है। यह मन को स्थिर करता है और सत्य के प्रति जागरूकता लाता है।
2. नाम जप की महिमा
महाराज जी ने कहा:
“हरि नाम जप बिना, माया का कोई इलाज नहीं।”
नियमित रूप से भगवान का नाम जपने से मन पवित्र होता है और माया की जकड़न ढीली पड़ती है।
3. निस्वार्थ सेवा
परमात्मा की सेवा और दूसरों की मदद करने से मन में अहंकार और आसक्ति कम होती है।
4. सत्संगति अपनाएं
संत महापुरुषों और भक्तों की संगति से जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आते हैं। सही संगति माया के जाल को तोड़ने में सहायक है।
5. आत्मा के स्वरूप का चिंतन करें
महाराज जी ने समझाया कि जब मनुष्य समझता है कि वह केवल यह शरीर नहीं है, बल्कि आत्मा है, तो माया का प्रभाव स्वतः कम हो जाता है।
उद्धरण और प्रेरणा
महाराज जी ने सत्संग में कहा:
“माया के बंधन तोड़ने का एक ही मार्ग है—प्रेम। जब मनुष्य अपने भीतर भगवान के प्रति प्रेम विकसित करता है, तो माया स्वयं उससे दूर हो जाती है।”
उन्होंने तुलसीदास जी की पंक्तियां उद्धृत की:
“माया महाठगिनी हम जानी, तिरगुन फांस लिए कर डोली।”
माया हमें तीन गुणों (सत्व, रजस, तमस) से बांधती है, और इन्हें तोड़ने का एकमात्र तरीका भगवद् प्रेम और भक्ति है।
निष्कर्ष
बार-बार माया में फंसना स्वाभाविक है, लेकिन श्री हित प्रेमानंद जी महाराज के बताए मार्ग पर चलकर हम इससे बच सकते हैं।
- सत्संग,
- नाम जप,
- सेवा,
- सही संगति,
- और आत्मचिंतन—ये पांच साधन माया के बंधनों को समाप्त करने में मदद करते हैं।
आइए, हम सभी इस ज्ञान को अपने जीवन में उतारें और माया के प्रभाव से मुक्त होकर भगवद् भक्ति में लीन हों।
“माया का अंत सत्य की पहचान है। सत्य की ओर बढ़ें।”