#733 Ekantik Vartalaap & Darshan/ 19-11-2024/ Shri Hit Premanand Govind Sharan Ji Maharaj

Shri Hit Premanand Govind Sharan Ji Maharaj
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Shri Hit Premanand Govind Sharan Ji Maharaj द्वारा प्रस्तुत #733 एकांतिक वार्तालाप और दर्शन एक विशेष सत्संग है, जिसमें भक्तों को भगवान के प्रति एकनिष्ठ (एकांतिक) भक्ति और दर्शन की गहराई का मार्गदर्शन मिलता है। यह सत्संग आत्मा और परमात्मा के बीच संबंध को समझने और उसे जीवन में आत्मसात करने का अद्वितीय अवसर है।

Table of Contents

सत्संग प्रश्न-उत्तर सारांश

वक्ता: श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज
सत्र विषय: जीवन के महत्वपूर्ण प्रश्नों का आध्यात्मिक समाधान
तिथि: 19 नवंबर 2024


00:00 – सही Decision कैसे लें?

प्रश्न: जीवन में सही निर्णय कैसे लें?
उत्तर:
महाराज जी ने कहा कि सही निर्णय लेने के लिए मन को स्थिर करना जरूरी है। निर्णय लेने से पहले भगवान का नाम जप करें और शास्त्रों या संतों से परामर्श लें। उन्होंने कहा:
“जहां मन शांत होता है, वहां बुद्धि सही दिशा में काम करती है।”
निर्णय में स्वार्थ, लालच और डर का त्याग करें। सत्य, धर्म, और प्रेम को आधार बनाएं।


03:57 – रोज़ नाम जप और सत्संग सुनने से क्या मेरी संतान भागवतिक गुणों वाली होगी?

उत्तर:
महाराज जी ने समझाया कि माता-पिता की भक्ति और उनके द्वारा सत्संग सुनने का सीधा प्रभाव संतान के संस्कारों पर पड़ता है। यदि माता-पिता नित्य भगवान का नाम जप करते हैं और सत्संग सुनते हैं, तो उनका प्रभाव संतान पर सकारात्मक और भगवद्गुणों वाला होता है।


09:16 – सफलता प्राप्त होने के बाद भी मन में संतोष क्यों नहीं होता?

उत्तर:
उन्होंने कहा कि बाहरी सफलता से संतोष नहीं मिलता, क्योंकि संतोष आत्मा का गुण है, मन का नहीं। सच्चा संतोष तभी मिलता है जब मनुष्य भगवान में रम जाता है। संसार की इच्छाएं कभी समाप्त नहीं होतीं, इसलिए उन्हें छोड़कर भगवान के शरणागत बनें।


12:30 – आत्मविश्वास और अहंकार में क्या अंतर है?

उत्तर:
आत्मविश्वास भगवान में विश्वास से उत्पन्न होता है, जबकि अहंकार अपने बल पर निर्भर करता है।

  • आत्मविश्वास: दूसरों का भला करते हुए आत्मा के गुणों का प्रयोग करना।
  • अहंकार: दूसरों को दबाकर खुद को श्रेष्ठ मानना।
    महाराज जी ने समझाया कि आत्मविश्वास विनम्रता लाता है, जबकि अहंकार विनाश का कारण बनता है।

17:44 – अगर कोई दीक्षा के नियम वृद्धावस्था के कारण पूरे न कर पाए तो क्या अपराध लगेगा?

उत्तर:
महाराज जी ने स्पष्ट किया कि भगवान नियम से नहीं, भक्त के भाव से प्रसन्न होते हैं। यदि वृद्धावस्था या अन्य कारणों से नियम पूरे न हो सकें, तो भगवान का नाम जपें और उनसे प्रार्थना करें। भगवान करुणामय हैं और भक्त के भाव को ही मुख्य मानते हैं।


19:27 – दिव्यांग पुत्र नामजप नहीं कर सकता, उसका कल्याण कैसे होगा?

उत्तर:
उन्होंने कहा कि माता-पिता का भक्ति मार्ग अपनाना और पुत्र के लिए भगवान से प्रार्थना करना उसका कल्याण करेगा। दिव्यांग बच्चों के लिए भगवान विशेष रूप से कृपालु होते हैं। माता-पिता का नामजप और सत्संग सुनना भी संतान के उद्धार में सहायक है।


21:04 – त्यागी कैसे बनें?

उत्तर:
त्यागी बनने का अर्थ है अपने मन और इच्छाओं का त्याग करना। महाराज जी ने कहा:
“सच्चा त्यागी वह है जो माया और अज्ञान को त्यागकर भगवान में लीन हो जाए।”
त्याग का अभ्यास छोटे-छोटे कदमों से शुरू करें, जैसे स्वार्थ छोड़ना, जरूरतमंदों की मदद करना, और भगवान के प्रति समर्पण करना।


26:46 – गीता में भगवान किस धर्म का त्याग और किस धर्म को अपनाने के लिए कहते हैं?

उत्तर:
भगवान श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं:
“सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।”
इसका अर्थ है कि व्यक्ति को माया, अहंकार, और संसारिक धर्मों का त्याग कर भगवान के शरणागत होना चाहिए। सच्चा धर्म प्रेम, सत्य, और सेवा का पालन करना है।


41:15 – ड्यूटी के दौरान अगर किसी की मदद करें और वह उपहार दे तो क्या करें?

उत्तर:
महाराज जी ने बताया कि सेवा का उद्देश्य निःस्वार्थ भाव होना चाहिए। यदि कोई उपहार दे, तो उसे विनम्रता से अस्वीकार करें और कहें कि आपकी सेवा ही पर्याप्त है। यदि अस्वीकार करना संभव न हो, तो उसे किसी जरूरतमंद को दान कर दें।


46:08 – युद्ध में एक हाथ और दोनों पैर गवाने वाले वीर योद्धा से महाराज जी की क्या वार्ता हुई?

उत्तर:
महाराज जी ने उस योद्धा को समझाया कि शरीर के अंगों का न होना उसके साहस और भक्ति को कम नहीं करता। उन्होंने कहा कि भगवान उस व्यक्ति के मन और कर्मों को देखते हैं। उस योद्धा की देशभक्ति और त्याग उसे विशेष स्थान दिलाएगी।


50:12 – बच्चा नहीं हो रहा तो लोग बोलते हैं पति की दूसरी शादी करादो!

उत्तर:
महाराज जी ने कहा कि इस प्रकार के विचार समाज की अज्ञानता को दर्शाते हैं। संतान का होना या न होना भगवान की इच्छा है। उन्होंने भक्तों को सलाह दी कि इस विषय पर शास्त्र और संतों की बातें सुनें और धैर्य रखें। संतान न होने की स्थिति में इसे भगवान की लीला मानकर भक्ति में लीन हो जाएं।


संदेश और निष्कर्ष:

श्री हित प्रेमानंद गोविंद शरण जी महाराज ने इस सत्संग में जीवन के गहन प्रश्नों के सरल और आध्यात्मिक समाधान दिए। उन्होंने कहा:
“संसार में हर समस्या का समाधान भगवान के शरणागत होकर और उनके नाम का जप करने में है।”
भक्तों को हर परिस्थिति में भगवान पर विश्वास रखना चाहिए और भक्ति के मार्ग पर चलते रहना चाहिए।

“राधे राधे!”


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