भारतीय सांस्कृतिक कैलेंडर में करवा चौथ एक खास महिलाओं का त्योहार है जो पतिव्रता और पति के दीर्घायु की कामना करती हैं। यह पर्व पुराने समय से ही स्त्री-पुरुष के बीच माधुर्य और सांबंधिक बनाए रखने का प्रतीक है और हर वर्ष समृद्धि और प्रेम की कामना के साथ मनाया जाता है।
करवा चौथ का इतिहास
करवा चौथ का त्योहार भारतीय जीवन में अत्यंत महत्वपूर्ण है, और इसका इतिहास महाभारत से जुड़ा है। द्रौपदी ने अपने पति के लिए उपासना करते हुए शिव और पार्वती माता से पूछा था कि वह अपने पति की आयु बढ़ाने के लिए क्या कर सकती हैं। माता पार्वती ने द्रौपदी को करवा चौथ का व्रत रखने का उपाय बताया था। द्रौपदी ने उसी तरीके से व्रत रखा और उससे ही करवा चौथ का पर्व प्रारंभ हुआ।
व्रत विधि
करवा चौथ का व्रत सुबह से ही शुरू होकर रात्रि तक चलता है। सुबह उठकर व्रती नारियों को चाँदनी और उपवास का व्रत रखना होता है। दिनभर व्रती नारियाँ भूखे रहती हैं और समय के अनुसार पूजा का समय चयन करती हैं।
सायंकाल को, चाँद को देखकर व्रती नारियाँ अपने पतिव्रता और पति की दीर्घायु की कामना करती हैं और चाँद की उपासना करती हैं। फिर उन्हें पति की मूर्ति के सामने रखकर करवा चौथ की कथा सुनाई जाती है और फिर पति की पूजा की जाती है। चाँद को देखकर पति की प्रतीति की जाती है और फिर व्रती नारियाँ पति की पीठ पर तिलक लगाकर व्रत को खत्म करती हैं।
प्यार और बंधन का महत्व
करवा चौथ एक ऐसा मौका है जब पति और पत्नी एक-दूसरे के प्रति अपने प्यार और समर्पण को और भी मजबूती से महसूस करते हैं। यह उनके बीच में एक नए और गहरे बंधन की भावना को उत्तेजित करता है और उन्हें एक-दूसरे के साथ जीवन के सभी संघर्षों और सुख-दुखों का सामना करने का साहस देता है।
करवा चौथ 2023 को एक नए उत्साह और समृद्धि के साथ मनाएं और इस विशेष मौके पर अपने प्यार को और भी मजबूती से महसूस करें। इस खास मौके पर, आपकी जिंदगी में प्यार और समृद्धि हमेशा बनी रहे। शुभ करवा चौथ!